Kullu, 3 October-अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में इस बार एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला।जिला कुल्लू के उपमंडल निरमंड के तांदी गांव से देवता कुई कांडा नाग पूरे 365 साल बाद ढालपुर मैदान पहुंचे हैं।देवता को देखने के लिए रोजाना हजारों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं।
1960 के बाद अब पहुंचे ढालपुर
देवता कुई कांडा नाग ने वर्ष 1660 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में भाग लिया था। इसके बाद लंबे समय तक वे उत्सव में नहीं आए। साल 1960 में एक बार वे ढालपुर पहुंचे, लेकिन फिर किन्हीं कारणों से दशहरा में आना बंद कर दिया।
इस बार क्षेत्र के युवाओं ने विशेष बैठक कर देवता से दशहरा में आने की अनुमति मांगी। श्रद्धालुओं की प्रार्थना को देवता ने स्वीकार किया और लगभग 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद देवता हजारों लोगों के साथ ढालपुर पहुंचे।
पैदल यात्रा और पड़ाव
देवता अपने हारियान व देवलु के साथ यात्रा पर निकले।
पहला पड़ाव घियागी में किया गया।
दूसरे दिन देवता शनि मंदिर पहुंचे।
तीसरे दिन भुंतर पहुंचे।
देवता कुई कांडा नाग के पुजारी गोविंद शर्मा ने बताया कि देवता किसी भी प्रकार की छत, प्रवेश द्वार या टनल से होकर नहीं गुजरते। पूरी यात्रा में यह भी तय किया गया कि तांदी से किस गांव के लोग देवता को उठाएंगे और आगे कौन जिम्मेदारी निभाएगा। हर घर से एक व्यक्ति का आना अनिवार्य था।
आपदा से बचाव के देवता
पुजारी गोविंद शर्मा ने बताया कि कुई कांडा नाग को बूढ़ी नागिन माता का सबसे बड़ा पुत्र माना जाता है और इन्हें नौ नाग (नसेसर) के नाम से भी जाना जाता है।
विशेष रूप से सूखे या प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए इनकी पूजा की जाती है।इस वर्ष जब पूरा क्षेत्र भारी बरसात से जूझ रहा था,तब भी श्रद्धालुओं ने देवता से रक्षा की प्रार्थना की थी। देवता की कृपा से किसी का भी नुकसान नहीं हुआ।देवता को महामारी को दूर करने और बारिश देने के लिए भी जाना जाता है।
मंदिर और आस्थाएं
कुई कांडा नाग के मंदिर तांदी,शेउगी, लटाडागई, घोरला, रूवा,ग्वाल, लुहरी सहित कई स्थानों पर स्थित हैं।देवता का प्रमुख मंदिर तीन गढ़ — हिमरी, सिरिगढ़ और नारायणगढ़ की चोटियों पर है।
देवता के साथ छियारा,पांचवीर,जल देवता, मशान देवता, बंशीरा, न्या देवता, जाछनी देवता और काली भगवती भी वास करते हैं।देवता के रथ में माता भुवनेश्वरी माता और जलेश्वरी भी विराजमान हैं।