मंडी, धर्मवीर (TSN)-अढाई दशक पहले लापता होने पर जिस इंसान का परिवार उसे मरा हुआ समझ कर अंतिम संस्कार तक कर चुका हो और उस इंसान को फिर से उसका परिवार फिर से मिल जाए तो उसके लिए दूसरे जन्म से कम नहीं है। कुछ ऐसी ही कहानी है हिमाचल के विभिन्न वृद्ध आश्रमों में अपनी जिंदगी के दुख भरे दिन काटने वाली कर्नाटक की “शीला यानि साकम्मा” की। शीला हम इसलिए कह रहें है कि क्योंकि वर्षों तक जिस महिला को आश्रमों में शीला के नाम से जानते रहे वह शीला नहीं कर्नाटक की साकम्मा थी। 25 वर्षो के लंबे इंतजार के बाद साकम्मा अपने राज्य कर्नाटक पहुंची है। शीला को फिर से नई जिंदगी व साकम्मा नाम देने और उसके परिवार से मिलाने के लिए मुख्य सूत्रधार का काम किया है 2008 बैच के एचएएस अधिकारी रोहित राठौर ने। रोहित राठौर मूलत बिलासपुर जिला से हैं और इन दिनों मंडी में बतौर एडीसी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
2018 में सुजानपुर में स्पॉट हुई थी शीला:
कर्नाटका की जिस महिला को हम आज साकम्मा के नाम से जानते है, उनका नाम हिमाचल के विभिन वृद्ध आश्रमों की फाइलों में शीला दर्ज है। हिमाचल में पहली बार साकम्मा यानि शीला को 2018 में हमीरपुर जिला में सुजानपुर के तत्कालीन एसडीएम ने कुरबत ऐ हाल में पाया था। जिसके बाद उक्त एसडीएम ने उन्हें शिमला स्थित मसोबरा के वृद्ध आश्रम भेजा। इसके बाद शीला नाम से साकम्मा प्रदेश के कई आश्रमों में रही और 2023 में फिर नेरचौक स्थित वृद्ध आश्रम पहुची थी। पिछले दो सालों से साकम्मा नेरचौक के भंगरोटू में ही रह रही थी।
रूटीन दौरे में कुछ खास कर गए राठौर
बात 18 दिसंबर 2024 की है जब एक प्रशासनिक अधिकारी के नाते रोहित राठौर वृद्ध आश्रम भंगरोटू पहुंचे। यह उनका रूटीन का दौरा था ताकि यहां रह रहे बुजुर्गों को मिल रही सुविधाओं का जायजा लिया जा सके और कमी-पेशी को पूरा किया जा सके। जब वे यहां से वापिस आने लगे तो उनकी नजर साकम्मा पर पड़ी जो शक्ल-सूरत से भी हिमाचली प्रतीत नहीं हो रही थी। जब उसके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पता चला कि वो इनका नाम शीला है और दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की रहने वाली है। अधिक जानने पर मामूल हुआ कि शीला यानि साकम्मा को हिंदी नहीं आती थी इसलिए अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बोल पाती हैं।
कर्नाटक के दो अधिकारियों से करवाई साकम्मा की बात और मिल गया घर का पताः
एडीसी मंडी को भी कन्नड़ नहीं आती थी जिसके चलते वे भी शीला यानि साकम्मा की बातें ज्यादा कुछ समझ नहीं पा रहे थे। एडीसी मंडी रोहित राठौर ने साकम्मा की बात को समझने के लिए कर्नाटक से यहां आए दो अधिकारियों की मदद ली। उन्होंने सबसे पहले आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती को फोन किया जो एसडीएम पालमपुर के पद पर कार्यरत हैं और मूलतः कर्नाटक की रहने वाली हैं। नेत्रा मैत्ती की बात साकम्मा से करवाई। साकम्मा को अपनी भाषा में बात करने वाला कोई मिला तो खुशी से फूली नहीं समाई और फटाफट से अपनी कहानी सुना दी। यहां से कुछ जानकारियां जुटाने के बाद रोहित राठौर ने डीसी मंडी अपूर्व देवगन के माध्यम से जिला में प्रोवेशन पर आए आईपीएस अधिकारी रवि नंदन को इस महिला के पास व्यक्तिगत तौर पर जाकर बातचीत करने का निवेदन किया। रवि नंदन भी कर्नाटक से हैं। इस महिला ने उन्हें भी अपनी सारी बात बताई और इस तरह शीला का असली नाम साकम्मा और घर का पता चल पाया।
कर्नाटक में मर चुकी थी साकम्मा, लेकिन फिर से हो गई जिंदा
इसके बाद साकम्मा के परिवार को तलाशने का कार्य शुरू हुआ। डीसी मंडी अपूर्व देवगन द्वारा प्रदेश सरकार के माध्यम से कर्नाटक सरकार से संपर्क साधा गया और साकम्मा के फोटो-वीडियो और अन्य प्रकार की जानकारी सोशल मीडिया पर सांझा की। कर्नाटक में साकम्मा के वीडियो बहुत ज्यादा वायरल हुए। इससे नतीजा यह निकला कि साकम्मा के परिवार की तलाश हो सकी। लेकिन यहां एक ऐसी जानकारी भी मिली जिससे यह मामला और भी ज्यादा सुर्खियों में आ गया। दरअसल 25 वर्ष पहले जब साकम्मा लापता हुई थी तो उस वक्त परिवार के लोगों ने किसी और महिला के शव को साकम्मा का शव समझकर अंतिम संस्कार कर दिया था। लेकिन जब परिवार को पता चला कि साकम्मा जिंदा है तो वह फूले नहीं समाए। कर्नाटक सरकार ने अपने तीन कर्मियों को साकम्मा को लाने के लिए यहां भेजा और दिनांक 24 दिसंबर को साकम्मा वापिस अपने घर लौट गई।
सामूहिक प्रयासों से वापिस अपने घर पहुंची साकम्माः
एडीसी मंडी रोहित राठौर कहते हैं कि यह सभी के सामूहिक प्रयास थे जिस कारण साकम्मा आज अपने घर वापिस पहुंच पाई है। हिमाचल प्रदेश सरकार, डीसी मंडी अपूर्व देवगन, आईएएस अधिकारी नेत्रा मैत्ती और आईपीएस प्रोबेशन रवि नंदन सहित अन्य लोगों ने जो प्रयास किए, यह उसी का नतीजा है। हमें इस बात की खुशी है कि हम एक महिला को इतने वर्षों के बाद वापिस अपने घर पहुंचा पाए हैं।
रोहित राठौर न होते तो साकम्मा ही अपने घर नहीं पहुंच पाती साकम्मा :
आज हम इतना कह सकते हैं कि यदि रोहित राठौर न होते तो शायद ही आश्रमों के फाइलों में शीला नाम से रह रही साकम्मा अपने घर पहुंच पाती। क्योंकि साकम्मा इससे पहले प्रदेश के कई आश्रमों में रह चुकी थी। वर्ष 2018 में उसे हिमाचल प्रदेश में स्पॉट किया गया था। उसके बाद जिन आश्रमों में साकम्मा रही वहां भी कई अधिकारियों ने दौरे किए, लेकिन कभी किसी ने साकम्मा के दर्द को उस नजरिए से नहीं देखा और जाना, जिस नजरिए से रोहित राठौर ने समझने की कोशिश की। गुमनाम हो चुकी साकम्मा को फिर से साकम्मा व अपनो से मिलाकर रोहित राठौर ने मानवता की वो मिसाल पेश की है जो शायद ही कोई पेश कर पाए। रोहित राठौर की बदौलत ही वर्षों तक गुमनामी के अंधेरे में जीती रही साकम्मा अपनों तक पहुंच पाई हैं।